Monday, July 29, 2019

यकृत के सिरोसिस के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा

आयुर्वेद में, सिरोसिस ऑफ लिवर को यक्रित वृधि के रूप में जाना जाता है। जिगर मानव शरीर में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है और जिगर की किसी भी बीमारी से गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। यकृत का सिरोसिस यकृत का एक पुराना, अपक्षयी रोग है जिसमें जिगर की कोशिकाओं का निरंतर विनाश और निशान होता है। जैसे ही जिगर की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, उन्हें निशान के ऊतकों द्वारा बदल दिया जाता है।


आयु और आयु के अनुसार लक्षण और लक्षण


जिगर के सिरोसिस का सबसे आम कारण शराब का अत्यधिक उपयोग है। यह शरीर में कई अंगों को नुकसान पहुंचाता है लेकिन यह लीवर के लिए सबसे हानिकारक है। एक दोषपूर्ण और अस्वास्थ्यकर आहार भी इस बीमारी के कारण का एक कारण है। हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी और हेपेटाइटिस डी, दवाओं, विषाक्त पदार्थों और संक्रमणों से भी यकृत के सिरोसिस होते हैं। जिगर का रंग लाल से पीले रंग में बदल जाता है और यह सिकुड़ भी जाता है। चयापचय की प्रक्रिया में बाधा आती है और इसके परिणामस्वरूप भूख और वजन कम हो जाता है। यह दस्त, पेट फूलना और पुरानी गैस्ट्रिटिस के बाद हो सकता है और साथ ही लीवर आईडी के क्षेत्र में दर्द का अनुभव हो सकता है। शरीर सूज जाता है। व्यक्ति को खांसी और सांस लेने में कठिनाई महसूस हो सकती है, जो यकृत के बढ़े हुए आकार के कारण होता है जो डायाफ्राम पर दबाव डालता है।

जिगर के सिरोसिस के लिए कुछ उत्कृष्ट आयुर्वेदिक उपचार हैं।


1. भृंगराज – यह लीवर के सिरोसिस के लिए सबसे अच्छा उपाय है। तना, फूल, जड़ और पत्तियों से निकाले गए रस का उपयोग सिरोसिस को ठीक करने के लिए किया जाता है। रस से भरा एक चाय चम्मच शहद के साथ मिलाया जाता है और शिशु सिरोसिस के मामले में दिया जाता है।

2. कटुकी – यह वयस्कों के लिए यकृत के सिरोसिस के लिए पसंद की दवा है। हरड़ की जड़ के चूर्ण का प्रयोग किया जाता है। एक चाय का चम्मच जड़ के चूर्ण में बराबर मात्रा में शहद के साथ मिलाकर दिन में तीन बार लेना चाहिए। कब्ज के मामले में खुराक को दोगुना तक बढ़ाया जा सकता है। खुराक के बाद एक कप गर्म पानी लेना चाहिए। कटु जिगर को अधिक पित्त का उत्पादन करने के लिए उत्तेजित करता है, ऊतकों को पुन: सक्रिय करता है और इसलिए यह फिर से काम करना शुरू कर देता है।

3. अरोग्यवर्धिनी वैटी – यह कातुकी और तांबे का एक यौगिक है और सिरोसिस के उपचार में बहुत उपयोगी है। 250 मिलीग्राम की दो गोलियां दिन में तीन बार गर्म पानी के साथ लेनी चाहिए। हालत की गंभीरता के आधार पर खुराक को एक दिन में चार गोलियों तक बढ़ाया जा सकता है।

4. त्रिफला, वसाका और काकामाक्षी कुछ अन्य दवाएं हैं जो जिगर के सिरोसिस के उपचार के लिए आयुर्वेद द्वारा अनुशंसित हैं।

आयुर्वेद द्वारा निर्धारित अन्य प्राकृतिक अवशेष


उपर्युक्त आयुर्वेदिक दवाओं के अलावा, कुछ घरेलू उपचार भी हैं जो यकृत के सिरोसिस के मामले में स्थिति को बेहतर बनाने में सहायक हैं। पपीते के बीज इस बीमारी को ठीक करने में मददगार होते हैं। पपीते के बीजों को पीसकर एक चाय के चम्मच नींबू के रस के साथ मिलाया जाना चाहिए और इसे रोजाना दो बार लेना चाहिए। यह यकृत के सिरोसिस के लिए एक उत्कृष्ट घरेलू उपाय है।

लीवर की विभिन्न स्थिति के लिए गाजर का रस और पालक का रस बेहद उपयोगी है। इसलिए, गाजर और पालक के रस का मिश्रण लिया जाना चाहिए जो यकृत की कार्यक्षमता को बढ़ाता है। अंजीर की पत्तियों का उपयोग लीवर के सिरोसिस के लिए एक लाभकारी उपाय के रूप में भी किया जाता है। अंजीर की पत्तियों को चीनी के साथ मैश किया जाता है और 200 मिलीलीटर पानी दिन में दो बार लिया जाना चाहिए।

मूली लीवर के सिरोसिस को ठीक करने में भी सहायक है। किसी भी रूप में मूली को आहार में शामिल किया जाना चाहिए। इसके अलावा मूली के पत्तों से बने रस और नरम तने का सेवन रोज सुबह खाली पेट किया जाना चाहिए।

एक चुटकी सेंधा नमक के साथ नीबू का रस लेना सबसे आसान और सबसे कुशल तरीका है जिससे लीवर की कार्यप्रणाली में सुधार होता है। एक चुटकी सेंधा नमक के साथ टमाटर का रस भी इस स्थिति के लिए एक अच्छा उपाय है।

डाइट और अन्य रजिस्टर


लीवर से संबंधित किसी भी बीमारी के इलाज में आहार सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।

सभी वसायुक्त, तैलीय, तले हुए और मसालेदार पदार्थ और खाद्य पदार्थों को पचाने के लिए कठोर नहीं लेना चाहिए।

शराब पर सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए और चाय, कॉफी और तंबाकू से भी बचना चाहिए।

गाय का दूध या बकरी का दूध, गन्ने का रस दिया जाना चाहिए दही के ऊपर बटर मिल्क को प्राथमिकता देनी चाहिए। लहसुन को लिवर के सिरोसिस के लिए भी मददगार माना जाता है।

यदि पेट तरल पदार्थ के साथ जमा होता है, तो रोगी को आहार को नमक मुक्त बनाया जाना चाहिए।

कब्ज होने पर स्थिति बिगड़ जाती है और इसे हटा दिया जाना चाहिए।

ताजा फलों और सब्जियों को आहार में शामिल करना चाहिए। जिन सब्जियों का स्वाद कड़वा होता है जैसे करेला, ड्रमस्टिक।

भारी व्यायाम नहीं करना चाहिए और केवल धीमी गति से चलने की सलाह दी जाती है।

Tuesday, July 16, 2019

आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार विधि द्वारा कैंसर, किडनी, डायबिटीज के उपचार में नवीनतम अनुसंधानों का लाभ ले।

वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित परिणाम डायबिटीज के इंजेक्शन और दवाईयों से छुटकारा:


ज्यादातर मरीजों को एक सप्ताह में ही दवाओं और इंजेक्शन से छुटकारा मिल जाता है और उसका शुगर पहले से बेहतर नियंत्रित भी रहता है.डायबिटीज के दुष्परिणाम भी ठीक हो सकते हैं: सीरम क्रिएटिनिन में कमी, अधिक ऊर्जा, उम्र बढ़ने और कायाकल्प। अधिक यौन शक्ति और उत्साह के साथ कामेच्छा की हानि में सुधार। बिना किसी दवा के स्तंभन दोष का सुधार।

आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार डायबिटीज में कैसे काम करता है।

आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार का वैज्ञानिक आधार:


डायबिटीज की मुख्य वजह है शरीर की कोशिकाओं के द्वारा एनर्जी / उर्जा का सही तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाना। आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार के द्वारा कोशिकाओं के मेटाबोलिज्म को ठीक किया जाता है जिससे कोशिकाओं द्वारा उर्जा का सही इस्तेमाल होने लग जाता है।आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार से डायबिटीज की मूल समस्या ही ख़त्म हो जाती है। जब कोशिकाएं उर्जा का सही इस्तेमाल करने लगती हैं तो शरीर में ताकत आती है जिससे सेक्स की समस्या मिट जाती है और आप सुखी जीवन का आनंद ले सकते हैं। क्योंकि आपके भय का अंत हो जाता है इसलिए आप परिवार और समाज के लिए सार्थक जीवन जीते हैं। डायबिटीज में आयुलर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार से किडनी फेलियर जैसे दुष्परिणाम नहीं होते।आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार से डायबिटीज के दुष्परिणाम जैसे किडनी फेलियर, कोरोनरी आर्टरी ब्लॉकेज, नपुंसकता इत्यादि भी ठीक होते हैं।

मधुमेह का आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार सबसे वैज्ञानिक है और मधुमेह की सभी जटिलताओं को रोकने में कारगर साबित होता है।

डायबिटीज में किडनी फेलियर के भय से बेहतर है आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार

आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार के द्वारा डायबिटीज की मूल समस्या ही खत्म हो जाती है, और आप किडनी फेलियर, हृदयाघात, अंधापन जैसे दुष्परिणाम से बच जाते हैं।

यह उपचार डायबिटीज टाइप -1 और टाइप 2 दोनों में सामान रूप से कारगर है.

आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक पद्धति द्वारा डायबिटीज के उपचार के फायदे


इंजेक्शन से मुक्ति (टाइप-1 और टाइप-2 दोनों में) आप मधुमेह के मधुमेह के उपचार द्वारा इंजेक्शन और मधुमेह की सभी दवाओं से छुटकारा पा सकते हैं और आपकी शर्करा और कोलेस्ट्रॉल अपने आप नियंत्रित हो जाते हैं डायबिटीज के दुष्परिणाम- अंधापन, हृदयाघात और किडनी फेलियर की सम्भावना न के बराबर होती है. यदि आप आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक मधुमेह के उपचार में अपनाते हैं, तो गुर्दे की विफलता जैसी जटिलताओं का कोई मौका नहीं है।असमय बुढापे से मुक्ति : डायबिटीज के मरीज की उम्र 20 साल और बढ़ाई जा सकती है।मरीज़ को मानसिक समस्या जैसे- यादाश्त कम होना, डिप्रेशन, सुस्ती, इत्यादि से मुक्ति.जोड़ों का दर्द, स्फूर्ति की कमी, इत्यादि से मुक्ति.पेट की समस्या जैसे- दर्द, कब्जियत, बार-बार पेट ख़राब होना, इत्यादि से मुक्ति.आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार से कैंसर होने की सम्भावना ख़त्म हो जाती है।आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार से शरीर में रोग प्रतिरक्षण (इम्युनिटी) की क्षमता बढ़ जाती है, जिससे सर्दी, बुखार, जुकाम, इत्यादि कम होता है.आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार से किडनी मजबूत होता है, और उसके ख़राब होने की सम्भावना न के बराबर होती है।हृदयरोग (Atherosclerosis) से बचाव करता है आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार से सेक्स की समस्या भी ठीक होती है।

डायबिटीज में वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित उपचार लें


मेटाबोलिक उपचार डायबिटीज टाइप -1 और टाइप 2 दोनों में सामान रूप से कारगर है।

यह उपचार वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित और दुष्परिणामों को रोकने में सक्षम है।

मधुमेह का आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार सबसे वैज्ञानिक है और मधुमेह की सभी जटिलताओं को रोकने में कारगर साबित होता है।

आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार की सफलता दर:


डायबिटीज के परम्परागत उपचार जैसे रोज इंजेक्शन लेना अथवा शुगर कण्ट्रोल करने की दवाई इत्यादि से शुगर कभी भी कण्ट्रोल नहीं हो सकता।इस तरह के उपचार से किडनी फेलियर इत्यादि से बचाव भी नहीं होता।यही वजह है कि गणमान्य लोग जिसे अच्छी चिकित्सा उपलब्ध है वह ज्यादा किडनी फेलियर का शिकार हो रहे हैं।

आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार से शुगर तुरंत ही कण्ट्रोल हो जाता है क्योंकि इसमें कोशिकाओं की मुख्य समस्या ही खत्म हो जाती है । क्योंकि बिमारी की वजह ही ख़त्म हो जाती है इसलिए किडनी फेलियर, हृदयाघात इत्यादि की संभावना ही नहीं रहती।

शुगर कण्ट्रोल के अलावा मरीजों को कई अन्य फायदे भी होते हैं।इस तरह आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार परम्परागत एलोपैथिक उपचार से बेहतर है।

मधुमेह का आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार सबसे वैज्ञानिक है और मधुमेह की सभी जटिलताओं को रोकने में कारगर साबित होता है।

आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार ही क्यों?


अमेरिका में इस चिकित्सा पद्धति ने पारंपरिक इंजेक्शन पर आधारित उपचार का अंत कर दिया है। इस उपचार में शुगर स्वतः ही कण्ट्रोल हो जाता है और किडनी फेलियर जैसे दुष्परिणाम की कोई संभावना ही नहीं रहती। डायबिटीज के मरीज अपने चिकित्सक से क्या सवाल करें?

डायबिटीज के मरीज अपने चिकित्सक से निम्नलिखित सवाल जरूर पूँछें. ये सवाल आपकी जिंदगी बदल सकते हैं

जो दवाई अथवा इंजेक्शन आपको दिया जा रहा है उससे कितने दिनों में शुगर कण्ट्रोल हो जाएगा.आपके चिकित्सक जिसका उपचार कर रहे हैं उसमें कितने लोगों का शुगर कण्ट्रोल है अथवा जिसका HbA1C, 6 से कम है अगर दूसरे किसी भी मरीज का शुगर उस दवाई से कंट्रोल नहीं है फिर इस बात की क्या संभावना है कि उसी दवाई से आपका शुगर कण्ट्रोल हो जाएगा.आपके चिकित्सक द्वारा उपचार में कितने डायबिटीज के मरीज जिसकी उम्र 50 वर्ष से ज्यादा है और उसका किडनी स्वस्थ है अथवा क्रिएटिनिन 1 से कम है.अगर ज्यादातर लोगों की किडनी फेल हो जा रही है फिर इसकी क्या संभावना है कि आप उसी दवा को खाकर किडनी फेलियर से बच जायेंगे. जिस डॉक्टर से उपचार आप ले रहे हैं क्या उसके किसी भी मरीज का शुगर नियंत्रित हुआ है अगर हाँ तो उसके घर जाकर जरूर सत्यता की जांच करें. जिस डॉक्टर से आप उपचार ले रहे हैं कहीं उसे ही तो डायबिटीज नहीं है अगर हाँ तो फिर जो चिकित्सक खुद का उपचार नहीं कर पाए, तो फिर क्या यह संभव है कि उनसे कोई भी मरीज का शुगर नियत्रित हो पायेगा?

डॉ विवेक श्रीवास्तव
जीवक आयुर्वेदा 
 हेल्पलाइन 7704996699

यदि आप गठिया से हैं परेशान तो यह पोस्ट आपके लिए है

आज कल हमारी दिनचर्या हमारे खान -पान से गठिया का रोग 45 -50 वर्ष के बाद बहुत से लोगो में पाया जा रहा है । गठिया में हमारे शरीर के जोडों में दर्द होता है, गठिया के पीछे यूरिक एसीड की बड़ी भूमिका रहती है। इसमें हमारे शरीर मे यूरिक एसीड की मात्रा बढ जाती है। यूरिक एसीड के कण घुटनों व अन्य जोडों में जमा हो जाते हैं। जोडों में दर्द से रोगी का बुरा हाल रहता है। इस रोग में रात को जोडों का दर्द बढता है और सुबह अकडन मेहसूस होती है। इसकी पहचान होने पर इसका जल्दी ही इलाज करना चाहिए अन्यथा जोडों को बड़ा नुकसान हो सकता है।हम यहाँ पर गठिया के अचूक उपाय बता रहे है.......

दो बडे चम्मच शहद और एक छोटा चम्मच दालचीनी का पावडर सुबह और शाम एक गिलास मामूली गर्म जल से लें। एक शोध में कहा है कि चिकित्सकों ने नाश्ते से पूर्व एक बडा चम्मच शहद और आधा छोटा चम्मच दालचीनी के पावडर का मिश्रण गरम पानी के साथ दिया। इस प्रयोग से केवल एक हफ़्ते में ३० प्रतिशत रोगी गठिया के दर्द से मुक्त हो गये। एक महीने के प्रयोग से जो रोगी गठिया की वजह से चलने फ़िरने में असमर्थ हो गये थे वे भी चलने फ़िरने लायक हो गये।

लहसुन की 10 कलियों को 100 ग्राम पानी एवं 100 ग्राम दूध में मिलाकर पकाकर उसे पीने से दर्द में शीघ्र ही लाभ होता है।

सुबह के समय सूर्य नमस्कार और प्राणायाम करने से भी जोड़ों के दर्द से स्थाई रूप से छुटकारा मिलता है।

एक चम्मच मैथी बीज रात भर साफ़ पानी में गलने दें। सुबह पानी निकाल दें और मैथी के बीज अच्छी तरह चबाकर खाएं।मैथी बीज की गर्म तासीर मानी गयी है। यह गुण जोड़ों के दर्द दूर करने में मदद करता है।

गठिया के रोगी 4-6 लीटर  पानी पीने की आदत डालें। इससे ज्यादा पेशाब होगा और अधिक से अधिक विजातीय पदार्थ और यूरिक एसीड बाहर निकलते रहेंगे।

एक बड़ा चम्मच सरसों के तेल में लहसुन की 3-4 कुली पीसकर डाल दें, इसे इतना गरम करें कि लहसुन भली प्रकार पक जाए, फिर इसे आच से उतारकर मामूली गरम हालत में इससे जोड़ों की मालिश करने से दर्द में तुरंत राहत मिल जाती है।

प्रतिदिन नारियल की गिरी के सेवन से भी जोड़ो को ताकत मिलती है।

आलू का रस 100 ग्राम प्रतिदिन भोजन के पूर्व लेना बहुत हितकर है।

प्रात: खाली पेट एक लहसन कली, दही के साथ दो महीने तक लगातार लेने से जोड़ो के दर्द में आशातीत लाभ प्राप्त होता है।

250 ग्राम दूध एवं उतने ही पानी में दो लहसुन की कलियाँ, 1-1 चम्मच सोंठ और हरड़ तथा 1-1 दालचीनी और छोटी इलायची डालकर उसे अच्छी तरह से धीमी आँच में पकायें। पानी जल जाने पर उस दूध को पीयें, शीघ्र लाभ प्राप्त होगा ।

संतरे के रस में १15 ग्राम कार्ड लिवर आईल मिलाकर सोने से पूर्व लेने से गठिया में बहुत लाभ मिलता है।

अमरूद की 4-5 नई कोमल पत्तियों को पीसकर उसमें थोड़ा सा काला नमक मिलाकर रोजाना खाने से से जोड़ो के दर्द में काफी राहत मिलती है।

काली मिर्च को तिल के तेल में जलने तक गर्म करें। उसके बाद ठंडा होने पर उस तेल को मांसपेशियों पर लगाएं, दर्द में तुरंत आराम मिलेगा।

दो तीन दिन के अंतर से खाली पेट अरण्डी का 10 ग्राम तेल पियें। इस दौरान चाय-कॉफी कुछ भी न लें जल्दी ही फायदा होगा।

दर्दवाले स्थान पर अरण्डी का तेल लगाकर, उबाले हुए बेल के पत्तों को गर्म-गर्म बाँधे इससे भी तुरंत लाभ मिलता है।

गाजर को पीस कर इसमें थोड़ा सा नीम्बू का रस मिलाकर रोजाना सेवन करें । यह जोड़ो के लिगामेंट्स का पोषण कर दर्द से राहत दिलाता है।

हर सिंगार के ताजे 4-5 पत्ती को पानी के साथ पीस ले, इसका सुबह-शाम सेवन करें , अति शीघ्र स्थाई लाभ प्राप्त होगा ।

गठिया रोगी को अपनी क्षमतानुसार हल्का व्यायाम अवश्य ही करना चाहिए क्योंकि इनके लिये अधिक परिश्रम करना या अधिक बैठे रहना दोनों ही नुकसान दायक हैं।

100 ग्राम लहसुन की कलियां लें।इसे सैंधा नमक,जीरा,हींग,पीपल,काली मिर्च व सौंठ 5-5 ग्राम के साथ पीस कर मिला लें। फिर इसे अरंड के तेल में भून कर शीशी में भर लें। इसे एक चम्मच पानी के साथ दिन में दो बार लेने से गठिया में आशातीत लाभ होता है।

जेतुन के तैल से मालिश करने से भी गठिया में बहुत लाभ मिलता है।

सौंठ का एक चम्मच पावडर का नित्य सेवन गठिया में बहुत लाभप्रद है।

गठिया रोग में हरी साग सब्जी का इस्तेमाल बेहद फ़ायदेमंद रहता है। पत्तेदार सब्जियो का रस भी बहुत लाभदायक रहता है।

गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर इसका लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है। अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करे

डॉ विवेक श्रीवास्तव
(प्राक्रतिक चिकित्सक )
जीवकआयुर्वेदा
☎7570901365

कीमोथेरेपी क्यों नहीं है कैंसर का सफल उपचार

कीमोथेरेपी क्यों नहीं है कैंसर का सफल उपचार


कीमोथेरेपी का उद्देश्य कैंसर कोशिकाओं को मारना और बीमारी को ठीक करना है। लेकिन कीमोथेरेपी से एक भी कैंसर रोगी ठीक नहीं हुआ है। इलाज के कई दावे हैं लेकिन वे मरीज कैंसर से पीड़ित नहीं थे। उनमें से अधिकांश का इलाज अमेरिका में चयापचय विधियों द्वारा किया गया था और भारत में यह खबर फैली थी कि उन्होंने कीमोथेरेपी ली है।

कृपया किसी भी कॉर्पोरेट या सरकारी एजेंसियों सहित किसी पर भी भरोसा करने से पहले कैंसर के इलाज के बारे में सावधानी से समझ लें। वे कुछ उद्योग के लाभ के लिए काम कर सकते हैं।

कभी भी किसी भी प्रकार की कीमोथेरेपी के लिए मत जाओ क्योंकि इससे आपको कभी भी बचत नहीं होगी बल्कि रोगियों की कीमोथेरेपी के कारण मृत्यु हो जाती है। चूंकि कैंसर का सुरक्षित और प्रभावी उपचार अभी उपलब्ध है, इसलिए कैंसर के हर मरीज को एक उम्मीद है। कीमोथेरेपी की सफलता दर

कीमोथेरेपी किसी भी प्रकार के कैंसर का इलाज नहीं कर सकती है। लेकिन अगर कोई कीमोथेरेपी लेता है तो उसके बचने की संभावना 2% से कम होती है। शोध में दिखाए गए अनुसार कीमोथेरेपी की पांच वर्षीय उत्तरजीविता दर 2% से कम है।

कीमोथेरेपी विधि का साइड इफेक्ट्स


पिछले कुछ समय से डरावनी कहानियों को सुनकर कई लोग कीमोथेरेपी को लेकर भयभीत हैं। ऑन्कोलॉजिस्ट आपको समझाएगा कि हाल के अग्रिमों ने इस उपचार को कम विषाक्त बना दिया है। लेकिन सच्चाई यह है कि इस जहरीले उपचार से अब तक किसी मरीज को कोई फायदा नहीं हुआ है।

मतली और उल्टी: मतली और उल्टी शायद कीमोथेरेपी के सबसे अधिक भयभीत दुष्प्रभाव हैं। इस तरह से आपका शरीर इस उपचार से दूर जाने के लिए आपको सुरक्षा और चेतावनी दे रहा है। तब आपका डॉक्टर आपको लक्षण को नियंत्रित करने के लिए शामक देता है।

बालों का झड़ना: कीमोथेरेपी के साथ बालों का झड़ना आम है, और हालांकि यह आपके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक नहीं है, लेकिन यह भावनात्मक रूप से बहुत परेशान कर सकता है।

अस्थि मज्जा का दमन: अस्थि मज्जा का दमन कीमोथेरेपी के अधिक खतरनाक दुष्प्रभावों में से एक है। इससे मरीजों की तुरंत मौत हो जाती है। अस्थि मज्जा के नुकसान के कारण अस्थि मज्जा में रक्त बनाने वाली कोशिकाएं होती हैं जो संक्रमण और एनेमिया के कारण रोगी को जीवित और मर नहीं सकती हैं।

मुंह के घाव: लगभग 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत लोग उपचार के दौरान कीमोथेरेपी-प्रेरित मुंह घावों का अनुभव करेंगे। स्वाद परिवर्तन: स्वाद परिवर्तन, जिसे अक्सर "धातु के मुंह" के रूप में जाना जाता है, कीमोथेरेपी से गुजरने वाले आधे लोगों के लिए होता है।

परिधीय न्यूरोपैथी: मोजा-दस्ताना वितरण (हाथ और पैर) में झुनझुनी और दर्द कीमोथेरेपी-प्रेरित परिधीय न्यूरोपैथी से संबंधित सामान्य लक्षण हैं और कीमोथेरेपी प्राप्त करने वाले लोगों के लगभग एक तिहाई को प्रभावित करता है।

आंत्र परिवर्तन: कीमोथेरेपी की दवाएं दवा के आधार पर कब्ज से लेकर दस्त तक आंत्र परिवर्तन का कारण बन सकती हैं।

सन सेंसिटिविटी: कई कीमोथेरेपी दवाएं धूप में बाहर जाने पर आपके सनबर्न होने की संभावना को बढ़ा देती हैं, कुछ को कीमोथेरेपी-प्रेरित फोटोटॉक्सिसिटी के रूप में जाना जाता है।

केमोब्रेन: कीमोथ्रेन शब्द को कीमोथेरेपी के दौरान और बाद में कुछ लोगों द्वारा अनुभव किए गए संज्ञानात्मक प्रभावों का वर्णन करने के लिए गढ़ा गया है। मल्टीटास्किंग के साथ वृद्धि हुई भूलने की बीमारी से कठिनाई के लक्षण निराशाजनक हो सकते हैं, और यह परिवार के सदस्यों को इस संभावित दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करने में मदद कर सकता है। कुछ लोग पाते हैं कि अपने दिमाग को क्रॉसवर्ड पज़ल्स, सुडोकू, या जो भी "ब्रेन टीज़र" जैसे व्यायाम से सक्रिय रखते हैं, वे उपचार के बाद के दिनों और हफ्तों में मददगार हो सकते हैं।

थकान: कीमोथेरेपी का सबसे आम साइड इफेक्ट है, लगभग प्रभावित करना हर कोई जो इन उपचारों को प्राप्त करता है। दुर्भाग्य से, इस तरह की थकान एक प्रकार की थकान नहीं है जो एक कप कॉफी या नींद की एक अच्छी रात का जवाब देती है।

कीमोथेरेपी के दीर्घकालिक दुष्प्रभाव


कीमोथेरेपी के दीर्घकालिक दुष्प्रभाव आमतौर पर आपकी पहली चिंता नहीं है जब आप सुनते हैं कि आपको कैंसर के लिए कीमोथेरेपी की आवश्यकता है। सभी कैंसर उपचारों के साथ, उपचार के लाभों को संभावित जोखिमों के खिलाफ तौला जाना चाहिए। फिर भी, कुछ देर के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी होना महत्वपूर्ण है-

साइड इफेक्ट्स जो कैंसर के इलाज के पूरा होने के महीनों या सालों बाद तक भी नहीं हो सकते हैं। अल्पकालिक साइड इफेक्ट्स के रूप में, इन लक्षणों का अनुभव करने वाले ऑड्स आपको प्राप्त होने वाली विशेष कीमोथेरेपी दवाओं पर निर्भर करेंगे। कुछ देर के प्रभावों में शामिल हैं:

हृदय रोग: कुछ कीमोथेरेपी दवाएं दिल की क्षति का कारण बन सकती हैं। क्षति का प्रकार हृदय की विफलता से वाल्व की समस्याओं से कोरोनरी धमनी रोग तक हो सकता है। यदि आप इनमें से कोई भी दवा प्राप्त कर रहे हैं, तो उपचार शुरू करने से पहले आपका डॉक्टर हृदय परीक्षण की सलाह दे सकता है। सीने में विकिरण चिकित्सा से दिल से संबंधित समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।

बांझपन: कई कीमोथेरेपी दवाओं के परिणामस्वरूप बांझपन का इलाज होता है। यदि कोई ऐसा मौका है जिसे आप कीमोथेरेपी के बाद गर्भ धारण करना चाहेंगे, तो कई लोगों द्वारा शुक्राणु या फ्रीजिंग भ्रूण जैसे विकल्पों का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है। उपचार शुरू करने से पहले इस चर्चा को सुनिश्चित करें।

परिधीय न्यूरोपैथी: कुछ कीमोथेरेपी एजेंटों के कारण आपके पैरों और हाथों में झुनझुनी, सुन्नता और दर्द कई महीनों तक बना रह सकता है, या स्थायी भी हो सकता है, जैसा कि उल्लेख किया गया है, अनुसंधान किया जा रहा है। न केवल इस दुष्प्रभाव का इलाज करने के तरीकों की तलाश करें, बल्कि इसे पूरी तरह से होने से रोकें।

सैकेंडरी कैंसर: चूंकि कुछ कीमोथेरेपी दवाएं कोशिकाओं में डीएनए के नुकसान का कारण बनकर काम करती हैं, वे न केवल कैंसर का इलाज कर सकती हैं, बल्कि किसी को कैंसर के रूप में भी विकसित होने का शिकार कर सकती हैं। इसका एक उदाहरण उन लोगों में ल्यूकेमिया का विकास है, जिन्हें आमतौर पर स्तन कैंसर के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवा के साथ इलाज किया जाता है। कीमोथेरेपी पूरी होने के बाद ये कैंसर अक्सर पांच से 10 साल या उससे अधिक समय तक होते हैं।

अन्य संभावित देर से प्रभाव में सुनवाई हानि या मोतियाबिंद से लेकर फेफड़े के फाइब्रोसिस तक के लक्षण शामिल हो सकते हैं। हालांकि इन प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं का जोखिम आमतौर पर उपचार के लाभ की तुलना में कम होता है, अपने डॉक्टर से साइड इफेक्ट्स के बारे में बात करने के लिए कुछ समय लें जो आपके विशेष कीमोथेरेपी के लिए अद्वितीय हो सकते हैं।

तो, यह स्पष्ट है कि कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव कैंसर की तुलना में अधिक खतरनाक हैं।

जोखिम भरा उपचार क्यों लें जो कभी आपकी समस्या का समाधान न करें। ऐसे उपचार का विकल्प चुनना बेहतर है जो कैंसर से जुड़ी सभी समस्याओं को हल कर सके।

कीमोथेरेपी कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए जहरीली सामग्री है। लेकिन पिछले कई वर्षों से यह देखा जाता है कि उपचार की यह विधि किसी भी प्रकार के कैंसर का इलाज नहीं कर सकती है।

बल्कि आमतौर पर कैंसर के मरीज इस उपचार को लेने से मर जाते हैं। जो लोग इस उपचार को लेते हैं, वे लंबे समय तक नहीं रहते हैं क्योंकि आमतौर पर उन रोगियों में कीमोथेरेपी दवाओं के कारण ऑन्कोजीनिटी के कारण कई अंगों में कैंसर विकसित होता है। ये दवाएं सामान्य कोशिकाओं को भी मार देती हैं और उसी वजह से मरीजों की मौत हो जाती है।

आयर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए डिज़ाइन किया गया है और सामान्य कोशिकाओं के लिए पूरी तरह से हानिरहित है क्योंकि आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार कैंसर ऊर्जा चयापचय में कमजोर बिंदुओं का उपयोग करता है।

आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार के अतिरिक्त रसायन


उपचार की विषाक्तता: कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए कीमोथेरेपी में इस्तेमाल की जाने वाली साइटोटोक्सिक दवाएं जो कोशिकाओं के डीएनए पर कार्य करती हैं। जबकि आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार लक्ष्य के रूप में कैंसर सेल के ऊर्जा मेटाबोलिक का उपयोग करता है। ये साइटोटोक्सिक दवाएं द्वितीयक कैंसर और अचानक मृत्यु आदि जैसे दुष्प्रभावों वाले रोगियों के लिए बहुत हानिकारक हैं।

कैंसर कोशिकाओं को मारने में सक्रियता: चूंकि कैंसर कोशिकाओं और सामान्य कोशिकाओं के बीच डीएनए में कोई अंतर नहीं है, कीमोथेरेपी सामान्य कोशिकाओं को मारे बिना कैंसर कोशिकाओं को नहीं मार सकती है। जबकि आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार कैंसर कोशिकाओं के ऊर्जा चयापचय का उपयोग करता है। चूंकि कैंसर कोशिकाओं का ऊर्जा चयापचय प्रकृति में अवायवीय है, जबकि सामान्य कोशिकाएं ज्यादातर एरोबिक श्वसन का उपयोग करती हैं। इस प्रकार कैंसर की कोशिकाएं चुनिंदा रूप से मार दी जाती हैं।

उपचार के अत्यधिक प्रभाव:


आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार हानिरहित होता है, जबकि कीमोथेरेपी जहरीली साइटोटोक्सिक दवाओं के उपयोग के कारण हानिकारक होती है।

असफल दर: ​​कीमोथेरेपी की सफलता दर या 5 साल की जीवित रहने की दर केवल 2% है, जबकि आयुर्वेदिक चयापचय उपचार 60% से अधिक पांच साल की जीवित रहने की दर दे सकता है।

विकसित देशों से प्रमाण जानने के लिए लिंक पर कृपया क्लिक करें। https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/15630849

जीवन की गुणवत्ता: आयुर्वेदिक व मेटाबोलिक उपचार जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है, जबकि कीमोथेरेपी कैंसर के रोगियों के जीवन की गुणवत्ता को खराब करती है।

जीवन प्रत्याशा और जीवन रक्षा: रसायन विज्ञान में जीवन रक्षा और दीर्घायु जीवन की प्रत्याशा और जीवन की गुणवत्ता में कमी आयुर्वेदिक व चयापचय उपचार में वृद्धि की जाती है।

डॉ विवेक श्रीवास्तव
जीवक आयुर्वेदा  
हेल्पलाइन 7704996699

Thursday, June 27, 2019

आयुर्वेद में ही है कैंसर का इलाज़

कैंसर की चिकित्सा के दौरान जीवक आयुर्वेदा व मैने यह अनुभव किया कि 98% कैंसर के मरीज सर्वप्रथम अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति के अनुसार ही अपना ईलाज करवाते हैं। जहाँ सर्वप्रथम उन्हें बहुत अधिक शक्तिशाली एवं भयंकर एन्टीबायोटिक दी जाती है ताकि जो रोग समझ में नहीं आ रहा है, उस पर किसी तरह विजय दिखाई जा सके। ये दवायें शरीर के अन्दर भूचाल ला देती हैं। त्रिदोषों में और अधिक असाम्यता पैदा हो जाती है तथा सबसे अधिक बुरा असर पहले से ही कुपित वात पर पडता है।

जब उन भयंकर एंटीबायोटिक इंजेक्शनों का सार्थक असर भी दिखाई नहीं पड़ता तब विभिन्न टेस्टों के माध्यम से कैंसर होने का सबूत इकट्ठा करते हैं और फिर कीमोथेरेपी, रेडियेशन एवं अन्य अति भयंकर चिकित्सा शुरू कर देते हैं। आप सभी जानते हैं कीमोथेरेपी / रेडिएशन थेरेपी में क्या होता है - इसमें कैंसर सेल्स को खत्म किया जाता है। कैंसर कोशिकाओं की एक सहज पहचान जो ये कीमोथेरेपी की दवायें करतीं हैं और पहचान कर उन्हें खत्म कर देतीं हैं, वह है - इनके एक से दो, 2 से 4, 4 से 8, 8 से 16,….…में बहुत तेजी से विभक्त होकर बढ़नें की प्रक्रिया । इस कीमोथेरेपी में बस यही एक पहचान है कि जो भी एक कोशिका विभक्त होकर दो कोशिकाओं के रुप में बनने की प्रक्रिया में है, उसे नष्ट कर देना है। (In cancer, the cells keep on dividing until there is a mass of cells.)

अरबों खरबों सेल्स मिलकर शरीरगत एक टिश्यू का निर्माण करते हैं। (Body tissues are made of billions of individual cells.)
This mass of cells becomes a lump, called a tumour.
Because cancer cells divide much more often than most normal cells, chemotherapy is much more likely to kill them.

In Cancer, the cells keep on dividing until there is a mass of cells.

This mass of cells becomes a lump, called a tumour.

चूंकि मज्जा धातु के अन्तर्गत ही कोशिकाओं का निर्माण होता है, अतः कीमोथेरेपी में Bone marrow tissues को असामान्य ढंग से नष्ट कर दिया जाता है, जिसके फलस्वरूप मज्जागत वात अत्यन्त कुपित हो जाती है और शरीर में भयंकर, असहनीय, अन्तहीन और इलाज हीन दर्द शुरू हो जाता है। पूरा का पूरा वातवह संस्थान (Neuro System of the Body) छिन्न भिन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति में केवल एक ही आयुर्वेदिक दवा काम कर सकती है और वह अश्वगंधा घृत,पुर्ननवा,हल्दी।

डॉ विवेक श्रीवास्तव
जीवक आयुर्वेदा 
हेल्पलाइन: 7704996699

गर्दन में दर्द (सर्वाइकल) कब क्यों कैसे ?

जोड़ों में दर्द एक बहुत ही आम मुद्दा बन गया है, इसका दोष हमारी जीवनशैली या व्यस्त कार्यक्रम पर है। हम अक्सर अपने शरीर की मांगों को अनदेखा करते हैं; परिणामस्वरूप, स्वास्थ्य सम्‍मिलित हो जाता है। घुटने, पीठ, कंधे या गर्दन में दर्द वे सभी लक्षण हैं जिनके माध्यम से हमारा शरीर हमें बताता है कि हमें अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इन दर्द में से, गर्दन में दर्द कई लोगों की समस्या है। गर्दन शरीर का हिस्सा है जो सिर का समर्थन करता है और सिर को किसी भी तरह की गति के लिए अनुमति देता है। गर्दन में दर्द न केवल गर्दन को प्रभावित करता है बल्कि यह कभी-कभी शरीर के अन्य अंगों जैसे सिर, माथे और बाहों को प्रभावित करता है जिससे दर्द असहनीय हो जाता है। गर्दन के दर्द को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए और व्यक्ति को गंभीर होने से पहले ही उपचार कर लेना चाहिए। गर्दन के दर्द के कारणों और लक्षणों को जानना भी बहुत जरूरी है।

गर्दन के दर्द के लक्षण:

गर्दन दर्द के लक्षण हैं: गर्दन में गंभीर दर्द होना या उल्टी होना। हाथ या हाथ हिलाने में असमर्थता होना। गर्दन में दर्द होना या गांठ का अहसास होना। बुखार में गले में दर्द होना। गर्दन में दर्द होना या हाथ में कमजोरी  गर्दन के दर्द के कारण गर्दन में दर्द विभिन्न कारणों से हो सकता है;
1) गर्दन में दर्द का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण मांसपेशियों में खिंचाव या मोच के कारण होता है। यह गलत स्थिति में सोने, गर्दन की खराब मुद्रा, गर्दन में झटका, किसी भी गतिविधि, डेस्क पर काम करने या लंबे समय तक कंप्यूटर पर काम करने जैसे कारणों के कारण हो सकता है। गर्दन में खिंचाव मूल रूप से गर्दन की खराब मुद्राओं के कारण होता है जिसे हमारी जीवनशैली या किसी विशेष आदत पर दोष दिया जा सकता है।

 2) एक चोट या दुर्घटना जो गर्दन को नुकसान पहुंचाती है, गर्दन में दर्द का कारण हो सकती है।

 3) मेनिनजाइटिस एक चिकित्सा स्थिति है जो अक्सर कठोर गर्दन की ओर ले जाती है।

 4) बहुत सारी चिकित्सा स्थितियां हैं जो गर्दन के पुराने दर्द का कारण बनती हैं; रुमेटीइड गठिया, ऑस्टियोपोरोसिस, स्पाइनल स्टेनोसिस, सर्वाइकल स्पोंडोलिसिस, डिस्क हर्नियेशन। गर्भाशय ग्रीवा के कशेरुकाओं को प्रभावित करने वाली ये चिकित्सा स्थितियां गर्दन में दर्द की ओर ले जाती हैं।

आमतौर पर लोग गर्दन के दर्द को गंभीरता से नहीं लेते हैं जब तक कि यह गंभीर न हो जाए। वरना लोग दर्द निवारक के माध्यम से गर्दन के दर्द का समाधान पाने की कोशिश करते हैं। हालांकि यह गर्दन के दर्द से निपटने का सही तरीका नहीं है। अगर आपकी गर्दन में दर्द लगातार समस्या बन गया है, तो उचित उपचार करना बेहतर है।

गर्दन के दर्द के लिए आयुर्वेदिक उपचार बहुत सकारात्मक साबित होता है क्योंकि आयुर्वेद दर्द के मूल कारण को समझकर किसी भी दर्द की समस्या से निपटता है। आयुर्वेद में, गर्दन का दर्द ऐसी स्थिति है जो गर्दन क्षेत्र में उत्तेजित वात दोष के कारण उत्पन्न होती है।

गर्दन के दर्द के आयुर्वेदिक उपचार में निम्न तरीके शामिल हैं: 

कुछ आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से बनी दवाओं में से कुछ रसना, अश्वगंधा, दशमूल हैं। ये दवाएं प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से बनाई जाती हैं। बिमार दर्द से पीड़ित व्यक्ति को विभिन्न आयुर्वेदिक उपचार दिए जाते हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य दर्द को सुखदायक तरीके से दूर करना है। ये थैरेपी हैं शिरोधारा, शिरोबस्ती अभ्यंगम, ग्रीवा वस्ती और नस्यम.कुछ आयुर्वेदिक उपचार में  आहार प्रबंधन और व्यायाम भी शामिल है जो तनाव को दूर करने में मदद करता है जो शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

डॉ. विवेक श्रीवास्तव
जीवक आयुर्वेदा 


हेल्पलाइन: 7704996699

Friday, June 21, 2019

चमकी बुखार का कहर आयुर्वेद करेगा असर...

देश में कई जगह एवं विशेष रूप से बिहार में दिमागी  बुखार / चमकी बुखार अपने प्रचंड रुप में सैकड़ों लोगों की मौत का कारण बन गया है। सम्पूर्ण एलोपैथी चिकित्सा पद्धति ने अपने हाथ खड़े कर लिए हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री को भी आना पड़ा पर रिजल्ट ?

आयुर्वेदज्ञों को आगे आ कर मानवता के हित में काम करना ही होगा, दूसरा कोई उपाय नहीं है। मुझे लगता है निम्नलिखित इलाज प्राण रक्षा करने में समर्थ होगा :-
*शहद के साथ दालचीनी का पाउडर - चार वक्त
* महा सुदर्शन घन बटी + स्वर्ण बसंत मालती रस + अमृतारिष्ट - दो वक्त
* लवंग + कज्जली + शहद - तीनों वक्त
* हरताल गोदंती भस्म + मोती पिष्ठी + प्रवाल पिष्ठी - तीन बार चन्दनादि तेल लगाने हेतु।

कोई सामान्य व्यक्ति वगैर आयुर्वेदज्ञों की सलाह व उचित देखरेख के बिना इस फार्म्यूलेशन का प्रयोग न करे। आप सभी विद्वान आयुर्वेदज्ञों से अनुरोध है कि यदि आप अपना अनुभव शेयर करें तो बहुत कृपा होगी।

डॉ विवेक श्रीवास्तव
जीवक आयुर्वेदा


हेल्पलाइन: 7704996699