Monday, March 26, 2018

घबराइए नहीं यहाँ है मधुमेह का सही इलाज़

भारत मे शायद ही कोई विरले व्यक्ति होंगे जिनके जानने वालों को ये रोग न हुआ हो, मधुमेह आज महामारी की तरह पूरे विश्व को अपनी गिरफ्त में ले रहा है, पूरा विश्व की त्रासदी से जूझ रहा है तो चलिए आज हम इस काल से सबसे जिद्दी सामान्यतः जीवन शैली से उत्पन्न रोग मधुमेह की बाद करते है आधुनिक चिकित्सा में इसे  हम डायबिटीज मेलेटस (DM), के नाम से जानते है।

वेसे मधुमेह रोगों को एक रोग न बोल कर रोगों का समूह कहना उचित होगा क्यों कि ये स्वभाव से ही सिंड्रोम है ।
यदि इसे परिभाषित करना हो तो बोला जाए कि metabolism(चयापचय) संबंधी बीमारियों का एक समूह है जिसमें लंबे समय तक उच्च रक्त शर्करा (high blood sugar) का स्तर होता है।

उच्च रक्त शर्करा (high blood sugar) के लक्षणों में अक्सर

पेशाब आना( polyurea) होता है, प्यास की बढ़ोतरी (polydipsia)होती है,
भूख में वृद्धि होती है।

यदि अनुपचारित  छोड़ दिया जाता है यानी कोई चिकित्सा न लिया जाए तो , मधुमेह कई जटिलताओं(compliance) का कारण बन सकता है।  तीव्र जटिलताओं(acute compliance) में
मधुमेह केटोएसिडोसिस (diabetic ketoacidosis),

नॉनकेटोटिक हाइपरोस्मोलर कोमा (hyperosmolar hyperglycemic state), या मौत शामिल हो सकती है।गंभीर दीर्घकालिक जटिलताओं (chronic compliance)में हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रोनिक किडनी की विफलता, पैर अल्सर और आंखों को नुकसान शामिल है।

तो चलिए अब बात करते है इसके कारण की

मधुमेह के कारण है या तो अग्न्याशय ( pancreas) पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता या शरीर की कोशिकायें इंसुलिन को ठीक से जवाब नहीं करती।

इंसुलिन के विषय मे आपको बता दु की  ये एक इस केमिकल या रसायनीक तत्व है जो हमारे पैंक्रियाज से निकल कर रक्त में आ जाता है जो कि ग्लूकोज को कोशिका के भीतर ले जाने से सहयोग करता है यानी यदि इंसुलिन न रह तो रक्त में ग्लूकोज रहेगा परन्तु वो कोशिकाओं में नही जा पायेगा ओर जब कोशिकाओ में नही जाएगा तो उसका पाचन (मेटाबोलिज्म) नही हो पायेगा ओर बॉडी को एनर्जी नही मिल पाएगी ।

यानी डायबिटीज़ में ख़ून में ग्लूकोज़ की मात्रा अमूमन प्लाज़्मा में या सीरम में नापी जाती है। प्लाज़्मा और सीरम को समझना ज़रूरी है पहले ? ख़ून की सारी कोशिकाओं को निकालने पर जो तरल हिस्सा बचा रह गया , वह प्लाज़्मा हुआ। और खून के जम जाने के बाद जो तरल हिस्सा शेष रहा ,  सीरम कहलाया। सीरम में ख़ून जमाने वाले तमाम प्रोटीन कोशिकाओं से बने थक्के में चले जाते हैं , जबकि प्लाज़्मा में केवल कोशिकाओं को हटाया जाता है। रक्त में मिलने वाली कोई भी प्रोटीन प्लाज़्मा में अलग नहीं होती।

यह जानकारी आपको इसलिए दी गयी कि आप जानें कि आपका ग्लूकोज़ 'किसमें' नापा गया है।
  • प्लाज़्मा में ? 
  • सीरम में ? 
  • अथवा सम्पूर्ण रक्त में ? 


यदि आप ग्लूकोमीटर का प्रयोग करते हों , तो उसपर लिखे निर्देश पढ़िए कि वह किस तरह से ग्लूकोज़ नाप रहा है। आमतौर पर ग्लूकोमीटर सम्पूर्ण रक्त में ग्लूकोज़-रीडिंग बताते हैं। पैथोलॉजी-लैब में लिया गया सैम्पल प्लाज़्मा में ग्लूकोज़ नापता है। इन दोनों के बीच 10-15 %  का अन्तर हो सकता है। प्लाज़्मा ग्लूकोज़ सम्पूर्ण ग्लूकोज़ से थोड़ा अधिक आता है। यानी पैथोलॉजी में अगर नापने वह 140 आया , तो सम्भवतः घर के सम्पूर्ण रक्तवाले ग्लूकोमीटर से नापने पर 120 के लगभग आये।

फिर ग्लूकोज़ की जाँचें खाली पेट और नाश्ते के दो घण्टे के बाद की जाती हैं।

  • खाली पेट का आशय क्या समझा जाए ? 
  • नाश्ता किसे कहा जाए ? 


एक बिस्कुट और सन्तरे वाला भी नाश्ता होता है और चार पराठों के साथ सब्ज़ीवाला भी। ऐसे में कोई तो मानक हमें तय करने होंगे न !

खाली पेट या निराहार का अर्थ यह होता है कि जाँच से आठ घण्टे पहले तक आपने कुछ न खाया हो। यही कारण है कि इस जाँच को सुबह कराया जाता है। पोस्ट-प्रैंडियल अथवा नाश्ते के उपरान्त करायी जाँच में दो घण्टे बाद रक्त में ग्लूकोज़ नापा जाता है। इसके पीछे भी चिकित्सा-विज्ञान का अपना सिद्धान्त है।

जैसे ही आपकी आँतों से भोजन अवशोषित होकर रक्त में पहुँचता है , पेट में मौजूद आपका अग्न्याशय इन्सुलिन नामक हॉर्मोन ख़ून में छोड़ने लगता है। इन्सुलिन का काम आपके  ख़ून से ग्लूकोज़ को शरीर के ऊतकों की कोशिकाओं के भीतर पहुँचाना है। दो घण्टों के बाद एक सामान्य आदमी में इन्सुलिन के सामान्य उत्पादन के कारण ग्लूकोज़ का स्तर सामान्य हो जाता है। लेकिन मधुमेह के रोगी में या तो इन्सुलिन बनता कम है या फिर ऊतक उसका कहा मानकर ग्लूकोज़ को भीतर नहीं लेते। इस कारण भोजन के दो घण्टे के बाद भी ख़ून में ग्लूकोज़ बढ़ा रहता है।

ग्लूकोज़ की एक और विशेषता है : यह लाल रक्त कोशिकाओं के भीतर स्थित हीमोग्लोबिन से जुड़ जाता है। इस प्रक्रिया को ग्लाइकेशन या ग्लाइकोसाइलेशन कहा जाता है।ग्लूकोज़ का हीमोग्लोबिनी आलिंगन जो एक बार हो जाए , तो फिर हटता नहीं। वह लाल रक्त कोशिका के पूरे जीवन-काल तक यों ही बना रहता है। यथावत्। यह अँगरेज़ी की 'टिल डेथ डू अस पार्ट' वाली मीठी किन्तु ज़हरीली मुहब्बत है।.

प्रश्न जो हर मधुमेह-रोगी के मन में उठता है कि HbA1c अगर इतना महत्त्वपूर्ण है ,

  • तो इसे कितना रखा जाए ? 
  • भोजन-व्यायाम-दवाओं से इसकी नियन्त्रित सीमा क्या तय की जाए ? 


इस बाबत लगभग विश्व के सभी मधुमेह-विशेषज्ञ मानते हैं कि साढ़े छह - सात तक इसे सामान्यतः होना चाहिए। इससे अधिक संख्या अनियन्त्रित डायबिटीज़ की तरफ़ इंगित करती है।

एक बात और। बहुत ज़्यादा कसा हुआ ग्लूकोज़-नियन्त्रण , जिससे HbA1c साढ़े छह से भी नीचे चला जाए , भी उचित नहीं है और हानिकारक है। ऐसे में हर रोगी को अपने शरीर को समझते हुए डॉक्टर की सलाह से उसे साढ़े छह - सात के बीच रखने का प्रयास करना चाहिए।

वृक्क ( गुर्दा ) व यकृत-रोगियों में , सर्जरी के उपरान्त , रक्तस्राव व रक्त चढ़ाने के उपरान्त तथा कुछ दवाओं के कारण HbA1c का मधुमेह-मापन समस्या पैदा कर सकता है। ऐसे में अपने डॉक्टर से मिलकर सही परामर्श लेना चाहिए , ताकि मधुमेह नियन्त्रित रखा जा सके।

याद रखिए : 
अपना डॉक्टर बनना बुरी बात है। विशेषज्ञ जो आपको परामर्श देता है , वह न्यूनतम आठ -नौ साल पढ़कर वहाँ तक पहुँचा है। मधुमेह के मापन और नियन्त्रण के लिए इस्तेमाल होने वाली जाँचें और दवाएँ क्षेत्रीय नहीं हैं , इनका अन्तरराष्ट्रीय प्रभाव है। यही जाँचें अमेरिका-यूरोप-आस्ट्रेलिया-अफ़्रीका हर स्थान पर इस्तेमाल होती हैं। ऐसे में विज्ञान पर सन्देह व्यक्त करना न सिर्फ़ उन्नत उपचार से वंचित रखता है , बल्कि आपको हँसी और दया का पात्र भी बनाता है

अब बात करते है मधुमेह के तीन मुख्य प्रकारो की




टाइप 1
डीएम पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए अग्न्याशय की विफलता का परिणाम है। इस रूप को पहले "इंसुलिन-आश्रित मधुमेह मेलाईटस" (आईडीडीएम) या "किशोर मधुमेह" के रूप में जाना जाता था। इसका कारण अज्ञात है

आयुर्वेद इसे सहज यानी अनुवांशिक मानता है



टाइप 2
DM इंसुलिन प्रतिरोध से शुरू होता है, एक हालत जिसमें कोशिका इंसुलिन को ठीक से जवाब देने में विफल होती है। जैसे-जैसे रोग की प्रगति होती है, इंसुलिन की कमी भी विकसित हो सकती है। इस फॉर्म को पहले "गैर इंसुलिन-आश्रित मधुमेह(नॉन इन्सुलिन डिपेंडेंट DM " (एनआईडीडीएम) या "वयस्क-शुरुआत मधुमेह" के रूप में जाना जाता था। इसका सबसे आम कारण अत्यधिक शरीर का  वजन होना और पर्याप्त व्यायाम न करना है।
ये प्रायः आलस्य पूर्ण जीवन जीने वालो को होता है ,

टाइप 3

गर्भावधि मधुमेह इसका तीसरा मुख्य रूप है और तब होता है जब मधुमेह के पिछले इतिहास के बिना गर्भवती महिलाओं को उच्च रक्त शर्करा के स्तर का विकास होता है।

आयुर्वेद ओर मधुमेह

आयुर्वेद में मधुमेह के कारण बताते हुए कहा गया है कि

  • आलस्यपूर्ण जीवन जीना
  • दिन में सोना 
  • दही आदि गुरु द्रव्य सेवन
  • जल में रहने वाले या उसके आसपास रहने वाले जीव का मांस खाने से 
  • मातापिता के वीर्य दोष 


आयुर्वेद चिकित्सा के मूल सिद्धांतों म् पहला सिद्धान्त है 
निदान परिवर्जन
  • अर्थात् रोग के कारण को दूर करे, 
  • आलस्य पूर्ण जीवन का त्याग करें,
  • दिन में सोना जलीय मांस आदि को खाना आदि त्याग दे, 
  • अपने आहार विहार दिनचर्या ओर ऋतुचर्या को संयमित रखे,
  • भोजन में तिक्त एवम कषाय द्रव्यों का सेवन जरूर करे


फिर चिकित्सा के लिए आयुर्वेद में जो दवाये है उनका पहला काम इंसुलिन पर न होकर उसके मूल यानी जो बीट सेल इंसुलिन बनाते है उनपर होता है और उसको ठीक करता है उनका पोषण और rejuvenation करता है और इंसुलिन का बनाने योग्य क्षमता प्रदान करता है, दूसरी चीज ये की जो मधुमेह से अन्य अंग प्रभावित होते है उनको भी बचाता है और स्वस्थ रखता है, उदाहरण के लिए आखो की रोशनी जो अक्सर खत्म हो जाता है मधुमेह में आयुर्वेद की चिकित्सा से ये सभी सामान्य नही हो पाती है और कुछ लंबे समय तक सेवन से रोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाता है ।




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Saturday, March 24, 2018

शारीर को फ़िट रखने के लिए जरुरी है पंचकर्म

शरीर की शुद्धि की प्राचीन आयुर्वेदिक पध्दति है पंचकर्म। आयुर्वेद के अनुसार चिकित्सा के दो प्रकार होते है शोधन चिकित्सा एवं शमन चिकित्सा। रोग के कारक दोषों को शरीर से बाहर कर देने की पद्धति शोधन कहलाती है। शोधन चिकित्सा को पंचकर्म कहते है। पंचकर्म के माध्यम से विभिन्न असाध्य रोगों का इलाज किया जाता है। भागदौड़ की जिन्दगी में इंसान आज कई मानसिक एवं शारीरिक रोगों का शिकार हो चुका हैं, लेकिन पंचकर्म चिकित्सा द्वारा इसका इलाज पूरी तरह संभव है। इस पध्दति से शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त बनाया जाता है। इसमें शरीर के सभी शिराओँ की सफाई हो जाती है,शरीर के सभी सिस्टम ठीक से काम करने लगते है। पंचकर्म के जरिये रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
पूर्वकर्म-पंचकर्म से पूर्व स्नेहन व स्वेदन विधियों से संस्कारित करके प्रधान कर्म के लिये तैयार किया जाता है। स्नेहन दो प्रकार से करते है। इसमे घृत ,तैल आदि से मालिश की जाती है। स्वेदन में शरीर से पसीने के माध्यम से विकार को निकालते हैं। प्रधान कर्म-इस पद्धति में अनेक प्रकियाओँ का इस्तेमाल करते है- वमन-कफ प्रधान रोगों का वमन कराकर ठीक किया जाता है। विरेचन-पित्त दोषों को विरेचन करवा कर ठीक किया जाता है। वस्ति-वात दोष को बाहर करने के लिये यह विधि की जाती है। रक्तमोक्षण-इसमें रक्त अशुद्धि वाले रोगों में अशुद्ध रक्त बाहर निकालने की कोशिश की जाती है। नस्य-नाक के छिद्रों में दवा डालकर कंठ तथा सिर के दोषों को दूर किया जाता है। पंचकर्म चिकित्सा से लाभ- शरीर को पुष्ट एवं बलवान बनाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हैं। शरीर की क्रियाओं का संतुलन ठीक करता है। रक्त शुद्धि से त्वचा कांतिमय होती है। इंद्रियों और मन को शांति मिलती है। दीर्घायु प्राप्त होती है। रक्त संचार बढ़ता है। मानसिक तनाव में कारगर है। अतिरिक्त चर्बी हटाकर वजन कम करता है। आर्थराइटिस, मधुमेह, तनाव, गठिया, लकवा आदि रोगोँ में राहत मिलती है। स्मरण शक्ति बढ़ती है।

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हार्ट अटैक से बचना है तो करें ये उपाय

दिल का दौरा एक गंभीर बीमारी है। दिल का दौरा पड़ने के कई कारण है, जब हृदय में रक्त संचार ठीक से नही हो पाता है या बंद हो जाता है तो हृदय की मांसपेशियों को जरुरत के अनुसार आक्सीजन मिल नही पाती है, परिणामस्वरुप मांसपेशिया काम करना बंद कर देती है,तब हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है।

हार्ट अटैक पड़ने के कारण

  • हाई कोलेस्ट्राल 
  • शुगर 
  • मोटापा
  • हाई ब्लडप्रेशर
  • जेनेटिक प्राब्लम 
दिल का दौरा पड़ने का इलाज एलोपैथ में काफी मंहगा होता है। बाईपास सर्जरी में ब्लाकेज वाली जगह पर स्प्रिंग(स्टंट) डाली जाती है,यह काफी महंगा ट्रीटमेंट है, जिसे एंजियोप्लास्टी कहते है। स्टंट कराने के बाद फिर से ब्लाकेज बन जाता है, जिससे दुबारा दिल के दौरे का खतरा बना रहता है। दिल के दौरे से हमेशा के लिये बचना हो तो जीवक आयुर्वेदा द्वारा बताये उपाय जरूर करें कभी दिल का दौरा नहीं पड सकता।

1-भोजन में अलसी के तेल का प्रयोग करे, इसमे ओमेगा3 एसिड भरपूर मात्रा में होता है, इससे दिल को ताकत मिलती है।
2-अर्जुन की छाल का पाउडर 1-2. चम्मच ले,एक कप दूध व एक कप पानी मिलाकर इतना उबाले की आधा रह जाय,फिर उसे चाय की तरह पीयें।
3-मिश्री और सूखे आंवले का चूर्ण बनाकर एक चम्मच प्रतिदिन ले।
4-गुड़ और घी असमान मात्रा में नियमित खाने से दिल मजबूत होता है।
5-लौकी रक्त संचार को नियमित करती है व ब्लाकेज को खत्म करती है। तुलसी व पुदीने का रस लौकी के जूस में मिलाकर लेने से ब्लाकेज पूरी तरह खत्म होता है। दिल के मरीज को वसायुक्त चीजें, अधिक नमक वाली चीजें,सफेद चावल व साफ्ट ड्रिंक का प्रयोग बिल्कुल न करें।


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Friday, March 23, 2018

पपीते में है औषधीय गुण: जीवक आयुर्वेदा

1-पपीता में पपेन नामक पाचन एंजाइम उच्च मात्रा में होता है,जो पाचन प्रक्रिया को बढ़ाता है। आंतो के कार्यो को बढ़ाता है,कब्ज रोकने में मदद करता है।पपीते में फोलेट,बीटा कैरोटीन व विटामिन ई व सी,उच्च मात्रा में होने के कारण आंतो के कैंसर नहीं होते।

2-पपीते में एंटी आक्सीडेंट गुण होने के कारण उच्च कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करता है। पपीता फाईबर का भी एक अच्छा स्रोत है।

3-पपीते में कैरोटीनायड और जैक्सेटीन होता है जो आपके आंखो की रैटीना को नुकसान से बचाता है।
पपीते में एंटी इंफ्लेमेटरी एंजाइम होते है,जो गठिया के दर्द को दूर करते है,पापेन व चयमोपपेन नामक दो प्रोटीन पाचन एंजाइम होते है व विटामिन ए ,सी,ई,व बीटा कैरोटीन की उच्च मात्रा सूजन कम करने में सहायक होती है।

4-पपीते को फेस पैक के रुप में प्रयोग किया जाता है,यह त्वचा के छिद्रो को खोलने एवं मुंहासे के इलाज व त्वचा के संक्रमण को रोकने मे मदद करता है। त्वचा से मृत कोशिकाओं को बाहर निकालता है व चमकदार बनाता है।

5-पपीते में एंटी आंक्सीडेंट विशेष रुप से लाइकोपीन,बीटा कैरोटीन व बीटा क्रिप्टोक्साथीन कैंसर के जोखीम को कम करने में सहायक है। इस कैंसर विरोधी फल में आइसोथियोसाइनेट्स नामक यौगिक शामिल है जो कारसिनोजेंस को खत्म करते है व ट्यूमर दबाने वाले प्रोटीन की कार्यशीलता को बढ़ाते है,ये कैंसर कोशिकाओं के विकास के साथ साथ उसके निर्माण को भी रोकते है।यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।

6-पपीता पोटेशियम एक अच्छा स्रोत है। उच्च रक्तचाप के मरीज के लिये बहुत लाभकारी है।

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Wednesday, March 21, 2018

जीवन के ये 6 मन्त्र आपको नहीं होने देंगे बीमार

आज रोजमर्रा के जीवन मे हम इतने व्यस्त होते जा रहे है कि अनेक रोगो का आगमन हमारे शरीर मे हो जाता है । तो आइए जानते है कि जीवन का शास्त्र आयुर्वेद हमे क्या मंत्र देता है जिसे अपना कर हम खुद को निरोगी कर सकते है ।

 मंत्र 1 - 

 सूर्योदय से पूर्व उठे ।

 मंत्र 2 - 

ताम्र पात्र का जल पीये ,जल कितना पीये इसके विषय मे बताया गया है कि अपनी अंजलि से 6 से 8 अंजलि।

मंत्र 3-

सर को बांध कर पगड़ी आदि से और् दाँतो को भींज कर मल त्यागे ।

मंत्र 4 - 

मुख में जल भर कर नेत्र को जल से धुले ।

मंत्र 5- 

अपने शारीरिक बल के आधा व्यायाम करें।

मंत्र 6- 

भोजन में मधुर अम्ल लवण कटु तिक्त कषाय का होना अनिवार्य है।


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Monday, March 19, 2018

कहीं आपका उठता कदम ऑर्थोराइटिस की और तो नहीं

आज कल के रोजमर्रा के जीवन में घुटनो का दर्द या आर्थराइटिस आम सा होता जा रहा है आइये आखिर क्यों ये रोग इतनी तेजी से बढ़ रही है ; क्यों  सभी इसके शिकार होते जा रहे है ।

 अर्थराइटिस आखिर है क्या? 

ऑर्थोराइटिस शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है जिसमे ऑर्थो का अर्थ हड्डी होती है इटिस का अर्थ शोथ होता है जो की वेदना का करण होता है , सामान्य भाषा में बोले तो जोड़ो में सूजन (joint inflammation ) इसका करण मूल है

तो अब हम बात करते है इसके प्रमुख लक्षणों (symptoms) की 

  1. दर्द 
  2. सन्धि (joint) के गति का सीमित होना 
  3. सूजन (inflammation) 
  4. एक या अनेक संधियों में दर्द 
  5. संधियों में अकडापन(stiffness) 
  6. संधियों से आवाज आना 
  7. संधियों का विकृत (deformity)होना 
  8. संधियों की हड्डीयो में कोने का निकलना 


यदि ये लक्षण दिख रहे है तो मानिये की हड्डियों की कमजोरी के रोग आने शुरू हो गए । हड्डी के विषय में आपको बता दू की हड्डी फाइबर और मैट्रिक्स से बना ठोस, सख्त और मजबूत संयोजी ऊतक है। इसका मैट्रिक्स प्रोटीन से बना होता है और इसमें कैल्शियम और मैगनीशियम की भी प्रचूरता होती है।

क्या आप जानते हैं कि हड्डियों की मजबूती उसमें मौजूद खनिजोंकी वजह से होती है। यानी की सामान्यत जो इसके निर्माण घटक है वो ही इसके पोषक है।

आयुर्वेद और संधिशोथ 

आयुर्वेद में इसके मुख्य करण वात को माना गया है। आयुर्वेद के स्पष्ट कहा गया है की वात की वृद्धि से रुक्ष, लघु खर चल विशद आदि गुणों की वृद्धि होती है जो समान्यः वृद्धावस्था में वृद्धि को प्राप्त कर जॉइंट में रहने वाली श्लेष्मा (fluid) को सुखा कर दुःख और वेदना की विकट स्थिति उत्पन्न कर देता है ।

आधुनिक चिकित्सा पद्धति और संधिशोथ 

आधुनिक चिकित्सा पद्धति में घुटने का बदलना या लाक्षणिक चिकित्सा कर रोग के लक्षणों में आराम पहुचना ही एक मात्र विकल्प बताया गया है ।

जीवनशैली की त्रुटि

दर्द के लिए तेल का प्रयोग तो भारत का बच्चा बच्चा जनता है , दूध घी जो हम भारतीयो की नित्य भोजन में प्रयुक्त होने वाली वस्तु होती थी पिछले 2 दशक में हम भारतीयो को दिग्भर्मित किया गया की घी आपको नुकशान करता है ये हृदय ,यकृत आदि को खराब कर देता है और हम सभी ने अपने भोजन से दूध घी आदि को निकाल दिया और फिर अर्थराइटिस जैसे रोगों को महामारी की तरह फैला दिया। हम सभी के आहारो से विविधता का ग़ायब हो जाने एवं हानिकारक रसायन के सेवन ही हम सभी लो बीमार कर रहा है,


आइये हम जाने की आयुर्वेद कैसे काम करती है 

आयुर्वेद का मूल सिद्धान्त निदान परिवर्जन - चूँकि हम आपको पहले ही बता चुके है की इस रोग में मूल में वात की वृद्धि है अतः वात को बढ़ाने वाला आहार विहार का त्याग करे। फिर बढ़े वात का शमन कर दिया जाये तो रोग में आराम आने शुरू हो जाती है। आयुर्वेद में चिकित्सा की दो विधा है जिसमे से शोधन चिकित्सा जिसे पंचकर्म के नाम से जाना जाता है जो रोग को शीघ्र ही शमन क्र देती है

पंचकर्म की प्रमुख कर्म

  • अभ्यांगम् 
  • शिरोधारा 
  • निरुह वस्ती 
  • अनुवासन वस्ती 
  • जानु वस्ति इत्यादि 


शमन चिकित्सा एवं पंचकर्म के द्वारा जोड़ो की समस्या का स्थायी इलाज सम्भव है।
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