Saturday, March 24, 2018

शारीर को फ़िट रखने के लिए जरुरी है पंचकर्म

शरीर की शुद्धि की प्राचीन आयुर्वेदिक पध्दति है पंचकर्म। आयुर्वेद के अनुसार चिकित्सा के दो प्रकार होते है शोधन चिकित्सा एवं शमन चिकित्सा। रोग के कारक दोषों को शरीर से बाहर कर देने की पद्धति शोधन कहलाती है। शोधन चिकित्सा को पंचकर्म कहते है। पंचकर्म के माध्यम से विभिन्न असाध्य रोगों का इलाज किया जाता है। भागदौड़ की जिन्दगी में इंसान आज कई मानसिक एवं शारीरिक रोगों का शिकार हो चुका हैं, लेकिन पंचकर्म चिकित्सा द्वारा इसका इलाज पूरी तरह संभव है। इस पध्दति से शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त बनाया जाता है। इसमें शरीर के सभी शिराओँ की सफाई हो जाती है,शरीर के सभी सिस्टम ठीक से काम करने लगते है। पंचकर्म के जरिये रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
पूर्वकर्म-पंचकर्म से पूर्व स्नेहन व स्वेदन विधियों से संस्कारित करके प्रधान कर्म के लिये तैयार किया जाता है। स्नेहन दो प्रकार से करते है। इसमे घृत ,तैल आदि से मालिश की जाती है। स्वेदन में शरीर से पसीने के माध्यम से विकार को निकालते हैं। प्रधान कर्म-इस पद्धति में अनेक प्रकियाओँ का इस्तेमाल करते है- वमन-कफ प्रधान रोगों का वमन कराकर ठीक किया जाता है। विरेचन-पित्त दोषों को विरेचन करवा कर ठीक किया जाता है। वस्ति-वात दोष को बाहर करने के लिये यह विधि की जाती है। रक्तमोक्षण-इसमें रक्त अशुद्धि वाले रोगों में अशुद्ध रक्त बाहर निकालने की कोशिश की जाती है। नस्य-नाक के छिद्रों में दवा डालकर कंठ तथा सिर के दोषों को दूर किया जाता है। पंचकर्म चिकित्सा से लाभ- शरीर को पुष्ट एवं बलवान बनाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हैं। शरीर की क्रियाओं का संतुलन ठीक करता है। रक्त शुद्धि से त्वचा कांतिमय होती है। इंद्रियों और मन को शांति मिलती है। दीर्घायु प्राप्त होती है। रक्त संचार बढ़ता है। मानसिक तनाव में कारगर है। अतिरिक्त चर्बी हटाकर वजन कम करता है। आर्थराइटिस, मधुमेह, तनाव, गठिया, लकवा आदि रोगोँ में राहत मिलती है। स्मरण शक्ति बढ़ती है।

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