Friday, May 11, 2018

यौनकर्म और सन्तान उत्पत्ति

यौनकर्म का सम्बन्ध सन्तान उत्पत्ति से है , मगर कितना है यह जानना हर स्त्री-पुरुष के लिए आवश्यक है। यौन और जन्म , दोनों को जाने बिना न परिवार चलाया जा सकता और न समाज। और न ही दोनों का नियमन किया जा सकता है। आधुनिक गर्भनिरोधकों का ज़माना अपेक्षाकृत नया है। लेकिन प्राचीन काल से गर्भनिरोधकों के साथ-साथ संसार में अलग-अलग जगहों में कॉइटस इन्टरप्टस का प्रचलन था।

यौनकर्म का ऐसा ढंग , जिसमें पुरुष अपने स्तम्भित शिश्न को स्खलन से पूर्व ही बाहर कर लेता था। इस 'अधूरे' यौनकर्म में इस बात की मान्यता रहती थी कि सन्तान-उत्पत्ति कदाचित् इससे नहीं होगी। बात को समझना आवश्यक है।

यौनकर्म की उत्तेजना का चरम जिसे ऑर्गैज़्म कहा जाता है और जिसके साथ ही वीर्य योनि में स्खलित होता है का गर्भाधान से सीधा-सीधा सौ प्रतिशत का सम्बन्ध नहीं है। और यह भी जानना ज़रूरी है कि पुरुष और स्त्री में उत्तेजना के आरम्भ के साथ ही तमाम ग्रन्थियों से स्राव आरम्भ हो जाते हैं। इनका काम यौनांगों  शिश्न और योनि को स्निग्धता देना और मार्ग की अम्लीयता को घटा कर शुक्राणुओं के लिए ज़रूरी क्षारीयता बनाना होता है।

पुरुष-उत्तेजना में आरम्भिक निकला द्रव प्री-कम कहलाता है , जो बल्बोयूरेथ्रल ( काउपर ) ग्रन्थियों की उपज है। लेकिन इसमें भी कुछ शुक्राणु होते हैं , जिनके कारण स्त्री गर्भ धारण कर सकती है। निष्कर्ष स्पष्ट है : शिश्न के प्रवेश के बाद स्रावित द्रव की एक बूँद भी गर्भाधान करा सकती है। ऑर्गैज़्म के समय या उससे पहले शिश्न को बाहर कर लेना , गर्भनिरोधक के रूप में बेकार तरीका है। कोई ताज्जुब नहीं कि इसकी असफलता की दर 15-25% तक रहती है।

( क्रमशः इंटरनेट से साभार प्राप्त चित्र में अलग-अलग पुरुष-प्रजनन-ग्रन्थियों का वीर्य के अंश में योगदान। नन्हीं बल्बोयूरेथ्रल ग्रन्थियों का पानीनुमा स्राव सबसे पहले निकलता है। )


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