Monday, May 14, 2018

पुरुष, पौरुष और पुरुषत्व के बीच स्वस्थ जीवन जीने की कला (भाग :२)

"बात वीर्य और शुक्राणु के बीच सम्बन्ध की चल निकली थी"

 बहुधा लोग वीर्य और शुक्राणु में भेद नहीं जानते। जानने की उन्हें ज़रूरत भी नहीं लगती। वीर्य सन्तान पैदा करता है , सदियों से पता है। शुक्राणु देख लिये विज्ञान ने , तो देख लिये होंगे। कौन सा बड़ा काम किया ! साइंसवालों को तो हर काम जानबूझ कर बारीक कर के दिखाने की आदत है ताकि जता सकें कि पुराने लोगों को कुछ नहीं आता था। वीर्य को अँगरेज़ी Semen कहती है : लैटिन के Serere से निर्मित शब्द जिसका अर्थ रोपना या आरोपण करना होता है। जबकि शुक्राणु के लिए स्पर्म चलता है , जिसमें यूनानी के sperma का पुट है , जो बीज को कहा जाता है। सच तो यह है वीर्य में मात्र चार-पाँच प्रतिशत ही शुक्राणु होते हैं , शेष पच्चानवे प्रतिशत वीर्य अन्य पदार्थों से बना होता है। इन अन्य में प्रोटीन , अमीनो अम्ल , फ्रक्टोज़ नामक शर्करा , तमाम खनिज-विटामिन और रसायन आते हैं।

इनमें से एक को भी शरीर ने यों ही नहीं इस्तेमाल किया : हर पदार्थ को वह बड़े महत्त्व के कारण ही प्रयोग में लाती है। एक स्त्री जहाँ अपने सारे अण्डाणु जन्म के साथ लेकर ( लगभग सभी ! ) जन्मती है , पुरुष में वीर्य-निर्माण आजीवन चलने वाली घटना है। यह मनुष्यों के वृषणों में शरीर से बाहर दो छोटी मांसल थैलियों में घटती है , जिन्हें स्क्रॉटम नाम दिया गया है। शब्द की व्युत्पत्ति के बारे में ठीक-ठीक तो नहीं पता लेकिन यह लैटिन के Scrautum से बहुत मिलता है। Scrautum तरकश या तूणीर को कहा गया जिसमें बाण रखे जाते थे। स्क्रॉटम भी पुरुषत्व के तूणीर ही हैं जिनमें शुक्राणु-रूपी बाण संचयित रहते हैं। एक सामान्य पुरुष को पिता बनाने के लिए दो वृषण आवश्यक नहीं , एक से ही इतने शुक्राणु निकलते हैं कि वह सन्तान उत्पन्न कर सकता है। शुक्राणु वृषण में बनते हैं , वहाँ से निकलकर और परिपक्व इपीडिडीमिस में होते हैं और यहीं भाण्डारित रहते हैं। कब तक के लिए ? वीर्य कोई अक्षय ऊर्जा का स्रोत नहीं। न वह ब्रह्मचर्य के कारण आजीवन भाण्डारित रह सकता है। वह बनता है प्रयोग के लिए , कुछ समय शुक्राणु इपीडिडीमिस में रखे जाते हैं।

लेकिन जब शरीर यह देखता है कि व्यक्ति इनका प्रयोग ही नहीं कर रहा तो वह इन्हें नष्ट कर के सोख लेता है।   वीर्य में शुक्राणुओं से इतर सामग्री का पच्चानवे प्रतिशत होना बताता है कि सन्तान-उत्पन्न करने वाले ये नन्हें तैराक इतना टीमटाम क्यों लेकर चलते हैं। क्योंकि आवश्यकता है। शरीर कुछ भी नाहक ही नहीं कर डालता। पुरुष सीधे वृषणों से वीर्य उत्पन्न करके भी उत्सर्जित कर सकता था। लेकिन शरीर में इपीडिडीमिस है , सेमाइनल वेसाइकल और प्रोस्टेट हैं , और भी कई ग्रन्थियाँ हैं। इन सब को जाने बिना मर्दानगी को जान लेना सम्भव नहीं। और फिर अतिशय महत्त्वपूर्ण अन्तःस्रावी तन्त्र है। वह जो स्त्रीत्व-पुरुषत्व का नियन्ता है। और फिर सबसे ऊपर मस्तिष्क है। जिसकी कोख में हर शारीरिक परिवर्तन जन्म पाता है और अपने गन्तव्य के लिए निकलता है।


अपने स्वास्थ्य सम्बन्धी निःशुल्क परामर्श के लिए हेल्पलाइन नंबर 7704996699 पर कॉल करें। अधिक जानकारी के लिए विजिट करें : www.JivakAyurveda.com

 भाग १ और भाग ३ भी पढ़ें

No comments:

Post a Comment