Sunday, June 2, 2019

कहीँ आप भी तो नहीं ले रहे एसिडिटी की दवा?

एसिडिटी की दवाओं का लम्बा सेवन आँतों को कर सकता है बीमार 

जब से एसिडिटी (अम्लीयता ) की प्रोटॉन-पम्प-इन्हिबिटर दवाओं ( ओमीप्रैज़ॉल-पैंटोप्रैज़ॉल वग़ैरह ) का चलन बढ़ा है , तब से मेडिकल जगत् का ध्यान इनके कारण पैदा होने वाली कई समस्याओं पर गया है। इन्हीं में से एक समस्या छोटी आँत में जीवाणुओं की संख्या अत्यधिक बढ़ जाना है , जिसे स्मॉल इंटेस्टाइनल बैक्टीरियल ओवरग्रोथ ( एसआईबीओ --- सीबो ) कहा गया है।

पाचन तन्त्र में जीवाणुओं की सर्वाधिक उपस्थिति बड़ी आँत और फिर मुँह में होती है। इन दोनों सिरों के बीच में पड़ने वाले आमाशय व छोटी आँत में जीवाणु कम होते हैं। कारण कई हैं। आमाशय में मौजूद अम्ल इन जीवाणुओं में से अधिकांश को मार देता है। इसी कारण मुँह से हम-आप जो कुछ भी खाते हैं , उसमें मौजूद अधिकतर जीवाणु आमाशय को पार ही नहीं कर पाते और वहीं नष्ट हो जाते हैं। इस कारण से छोटी आँत में जीवाणुओं की संख्या काफ़ी कम होती है।

लेकिन क्या हो अगर आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल कम बनने लगे ?
या दवाएँ खाकर हम उसका उत्पादन कम कर दें ?
या हमारा प्रतिरक्षा-तन्त्र कमज़ोर हो जाए ?
या आँतों की मांसपेशीय चाल ( फैलना-सिकुड़ना ) कम पड़ने लगे ?
या छोटी आँत और बड़ी आँत जहाँ मिलते हैं , उस स्थान से जीवाणु किसी कारणवश बड़ी आँत से छोटी आँत में आकर बसने लगें ?
तब क्या होगा ?
इन घटनाओं के कारण छोटी आँत में बढ़ी जीवाणुओं की आबादी हमारे पाचन पर क्या प्रभाव डालेगी ?

ग़ौरतलब बात यह है कि छोटी आँत में आवश्यकता से अधिक बढ़े जीवाणु पाचन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे। नतीजन व्यक्ति में तरह-तरह के लक्षण पैदा होंगे। पेट फूलना , डकार आना , मलद्वार से अधिक हवा निकलना , पेटदर्द , दस्त व वज़न में गिरावट सभी देखे जा सकते हैं। ध्यान रहे , यद्यपि ये लक्षण केवल छोटी आँत में जीवाणुओं के बढ़ने से ही नहीं पैदा होते , लेकिन जीवाणुओं की बढ़ी हुई आबादी इन लक्षणों को किसी व्यक्ति में पैदा कर सकती है यह जानना ज़रूरी है। जीवाणुओं की इस बढ़ी हुई संख्या के कारण भोजन न ठीक से पचता है और न अवशोषित होता है। शरीर में खनिजों व विटामिनों की कमी होने लगती है। एंटीबायटिकों के समुचित प्रयोग एवं भोजन में पोषक-तत्त्व देकर गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट मरीज़ों की इस बीमारी को ठीक करते हैं। साथ ही इस बात पर भी काम किया जाता है कि किस कारण से छोटी आँत में जीवाणुओं की आबादी बढ़ी। यदि सम्भव हुआ , तो उस मूल रोग का भी उपचार किया जाता है।

डॉ विवेक श्रीवास्तव
जीवक आयुर्वेदा
हेल्पलाइन - 7704996699

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