Thursday, June 13, 2019

अप्राकृतिक भोजन और स्वस्थ्य एक साथ संभव नहीं

असंशयं महाबाहो मनोदुर्निग्रहं चलम् | अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्येते ||
अर्थात् : हे महाबाहो !
निःसन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है लेकिन हे कुन्तीपुत्र ! उसे अभ्यास और वैराग्य से वश में किया जा सकता है |

अप्राकृतिक भोजन से आनन्द नहीं निकलता कोई बात नहीं। अब अगला अप्राकृतिक भोजन ढूँढ़ते हैं , शायद वहाँ आनन्द मिले।
पुराने ग्रन्थ जनक को विदेह कहते हैं। विदेह होने का# अर्थ देह से अलग होना या मरना नहीं होता। देह से अलग होने का अर्थ होता है , दैहिक इच्छाओं का ग़ुलाम न होना। रसगुल्ला मिला तो ठीक , न मिला तो भी कोई बात नहीं। एसी चला तो भी सो लेंगे , न चला तो भी नींद तो आएगी ही। लेकिन बाज़ार ने सतत कोशिशें कीं ताकि हमारी सारी कामेच्छाएँ ( वॉन्ट ) हमारी आवश्यकताओं ( नीड ) में बदलती चली जाएँ। सांख्य योग और गीता जब मन को दुनिग्रही बताते हैं , तो उसपर पड़ने वाले डोपामीनी प्रभाव की ही बात कर रहे होते हैं। वह जो किसी नशेड़ी सारथी की तरह है , जिसके कारण इन्द्रियों के पाँचों घोड़े बेलगाम हो जाते हैं।

अब ग्लोबल बिज़नेस वाले अंकलजी नया ज्ञान लेकर मार्केट में आये हैं और लोग उसपर झूम रहे हैं : लूज़ कंट्रोल , इंडल्ज , ड्रूल , मन ललचाये , रहा न जाए , नो वन कैन ईट जस्ट वन , ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा , छड्ड दुनिया को दुनिया तो देगी ज्ञान। अब चाहे इससे शरीर की ऐसी-तैसी हो , चाहे समूचे पर्यावरण की !

काम को इसलिए हमें दिया कुदरत ने ताकि हम निर्मिति-रत रहें। निर्माण तब तक जारी रहे , जब तक मौत न आ जाए। निर्माण केवल यौन-कर्म से ही नहीं होता , सेक्स से ही हम सन्तान नहीं पैदा करते। जो कुछ भी हमारे द्वारा सृजित किया जाता है , वह सब हमारी निर्मिति है। हमारी हर सर्जना जीव-पर्यन्त जारी रहे और निर्माण में बदले , दुर्भाग्य यह कि बाज़ारवाद-भोगवाद ने इस रासायनिक आशान्वयन को ही हमारी सबसे बड़ी रासायनिक कमज़ोरी में बदल दिया।

मिठाइयाँ केवल दीवाली-होली खायी जाती थीं , अन्य बड़े सुखों का जन-सामान्य के लिए टोटा था। राजे-महाराजे ही थे , जो रात-दिन डोपामीनी कुण्ड में गोते लगाया करते थे। फिर सामन्तवाद ने पूँजीवाद को स्थान दिया और तब मशीनों ने मॉर्केट बनाते हुए भोग को सर्वसुलभ कर दिया। एक सीमा तक यह आवश्यक और ठीक था : रोटी , कपड़ा , मकान , स्वास्थ्य , शिक्षा , नौकरी और थोड़ा मनोरंजन सबको मिले , यह ज़रूरी है। लेकिन फिर मनोरंजन ने अन्य सभी को ठेलकर किनारे कर दिया और व्यक्ति मनोरंजनी-मात्र बनकर रह गया। इतना कि उससे मनोरंजन के वादे पर आप सारी मौलिक आवश्यकताओं से उसका ध्यान हटा सकते हैं।

लड़के को स्मार्टफ़ोन मिल गया , वह पॉर्न देख रहा है। अब समझाते रहिए उसे कि पढ़ लो। डोपामीन पुरस्कार की ऐसी उम्मीद जगा चुका है , कि लड़का उसके तिलिस्म से निकल ही नहीं पा रहा। शराब और धुएँ का सेवन पहले कम था , अब बढ़ चला है। आउटिंग पहले कम होती थी , अब ख़ूब-ख़ूब होती है। उम्मीद लिए मानवों के ढेर बाज़ारों में आनन्द की तलाश में भटकते हैं। अब करते रहिए कोशिश दीर्घकालिक प्रेम , पीढ़ियों की सुरक्षा , स्वास्थ्य-जैसे लम्बे निवेशी मुद्दों की --- सुनने वाले आपको कम ही मिलेंगे।

अप्राकृतिक भोजन से स्वाद मिलेगा तो आनन्द मिल सकता है --- व्यक्ति मन को समझा रहा है।

डॉ विवेक श्रीवास्तव
जीवक आयुर्वेदा 
हेल्पलाइन :7704996699

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