Thursday, June 13, 2019

बच्चों को कब और कैसे दें लीची?

लीची और इसके कारण बच्चों में उत्पन्न होने वाले लक्षणों पर और काम किये जाने की आवश्यकता विशेषज्ञ बताते हैं, लेकिन कुछ बातें 2017 से वैज्ञानिक सामने लाये हैं। लीची में कुछ ख़ास रसायन होने के बाबत द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में एक विशिष्ट शोध छपा था। इस फल में हायपोग्लायसिन ए एवं मेथिलीन सायक्लोप्रोपाइल ग्लायसीन होते हैं, जो कुपोषित बच्चों के ख़ून में शर्करा का स्तर बहुत घटा सकते हैं। ऐसा बहुधा तब होता है , जब ये बच्चे शाम को भोजन नहीं करते और सुबह लीची के बाग़ों से गिरे हुए फल उठाकर खा लेते हैं।

यह शोध सेंटर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल , संयुक्त राज्य अमेरिका और नेशनल सेंटर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल , भारत के वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया और तब यह निष्कर्ष पाया गया। एक बात जो और खुली , वह यह कि अनपकी-अधपकी लीचियों को खाने पर यह समस्या अधिक होती है , क्योंकि इन फलों में ये रसायन अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। वैज्ञानिकों-डॉक्टरों के अनुसार समस्या लीची का फल नहीं है , समस्या है कुपोषित रात से भूखे बच्चों का सीधे सुबह लीची खा लेना। लगभग सभी मरने वाले बच्चों के रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर अत्यधिक न्यून पाया जाता है।

इस शोध के साथ एक अन्य इतर बात जो बांग्लादेशी वैज्ञानिकों द्वारा सामने लायी गयी है , वह लीची की खेती के लिए प्रतिबन्धित एंडोसल्फान व अन्य कीटनाशकों का प्रयोग है। कई वैज्ञानिकों का कहना है कि निर्धन तबके के ये बच्चे लीचियों को बिना धोये दाँतों से छीलकर खाते हैं , जिससे उनके शरीर में एंडोसल्फान जैसे रसायन प्रवेश कर जाते हैं।

अब तक दो बातें स्पष्ट हैं : फलों को अच्छी तरह धोकर व छीलकर खाया जाए और भूखे बच्चों को सुबह सीधे खाने को लीचियाँ न दी जाएँ। अन्यथा रक्त में शर्करा-स्तर गिरने से बच्चे बीमार पड़ सकते हैं। आगे जितना ज्ञान हमें इस रहस्यमय रोग के विषय में अधिक होता रहेगा , उतने उचित व सार्थक क़दम हम उठा पाएँगे।

डॉ विवेक श्रीवास्तव
जीवक आयुर्वेदा 
हेल्पलाइन: 7704996699

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