Saturday, June 8, 2019

मोटापा घटाना है तो लें कीटो आहार..

कीटो आहार का कॉन्सेप्ट नया नहीं है। पुराने समय में इसे डॉक्टर ( बच्चों के ) मिर्गी के दौरों को नियन्त्रित करने के लिए इस्तेमाल करते आये हैं। लेकिन आज जब मोटापा एक महामारी का रूप ले चुका है , तब इस आहार को हमें दोबारा थोड़े विस्तार से समझना आवश्यक हो जाता है।

सवाल है कि क्या मोटापा घटाने में कीटो-आहार उपयोगी है ? उत्तर है कि हाँ , लघु-मध्यम समय के लिए इस तरह का भोजन मोटापे को कम करने में निश्चित तौर पर मददगार है। लेकिन इस आहार के दीर्घकालिक प्रभाव मनुष्य के शरीर पर क्या होंगे , यह अभी हमें ठीक से नहीं पता।

मानव-मस्तिष्क ऐसा अंग है , जो ऊर्जा के लिए ग्लूकोज़ का इस्तेमाल करता है , वसा का नहीं। मस्तिष्क और रक्तसंचार के बीच एक अवरोध यानी बैरियर होता है , जिसे ब्लड-ब्रेन-बैरियर कहा जाता है। ग्लूकोज़ के अणु इस बैरियर को आसानी से पार कर के मस्तिष्क में प्रवेश कर जाते हैं। वहाँ इस ग्लूकोज़ को रासायनिक अभिक्रियाओं के तोड़ा जाता है और इससे ऊर्जा पैदा की जाती है।

लेकिन क्या हो अगर कोई बीस ग्राम प्रतिदिन से कम ग्लूकोज़ ( यानी कार्बोहाइड्रेट ) खाने लगे ? व्रत रखता हो ? अनशन या भूख हड़ताल पर रहा करता हो ? ऐसे में मस्तिष्क को समुचित मात्रा में ग्लूकोज़ न मिल सकेगा। तब फिर शरीर अपने भीतर भाण्डारित प्रोटीनों और वसाओं से ग्लूकोज़ बनाने की पहले कोशिश करेगा। इस प्रक्रिया को ग्लूकोनियोजेनेसिस कहा जाता है। लेकिन इस प्रक्रिया के भी काम नहीं चलता , क्योंकि भोजन में कार्बोहाइड्रेट का स्तर काफ़ी कम किया जा चुका है। तब फिर ?

तब वह शरीर में भाण्डारित वसा को ऊर्जा पैदा करने के लिए वसीय अम्लों में तोड़ेगा। लेकिन वसीय अम्ल ब्लड-ब्रेन-बैरियर के पार जा नहीं सकते। फिर ? ऐसे में तब वसीय अम्लों को तोड़कर कीटोन-बॉडी बनायी जाएँगी। ये कीटोन-बॉडी ब्लड-ब्रेन-बैरियर पार करने में सक्षम हैं और इनसे मस्तिष्क को ऊर्जा मिल सकेगी। इस तरह से ये कीटोन-बॉडी ग्लूकोज़ का स्थान ले लेंगी और अब मस्तिष्क इनसे ऊर्जा प्राप्त करेगा।

कीटोनों का ग्लूकोज़ की कमी में होने वाला यह शारीरिक निर्माण कीटोसिस कहलाता है। वज़न कम करने के अलावा कीटो-आहार खाने से कई अन्य लाभ भी लोगों ने पाने के दावे किये हैं। लेकिन अभी कुछ भी दीर्घकालिक पुख़्ता तौर पर कहा नहीं जा सकता है।

कीटो-आहार के पीछे दो बातों को और समझना आवश्यक है। ज्यों-ज्यों हम सभ्यता के तौर पर विकसित हुए हैं , अधिकाधिक प्रोसेस्ड भोजन विशेषरूप से चीनी-मैदा जैसे कार्बोहाइड्रेटों की तरफ़ आये हैं। प्राचीन मानव की तुलना में आज का मानव अधिक कार्बोहाइड्रेट खाता है और उसी को मोटापा से जूझना भी पड़ रहा है। जंगली मनुष्य ( कृषि से पहले ) अधिकाधिक प्रोटीन और वसा पर ही निर्भर रहा करता था और स्वस्थ रहता था। फिर दूसरी बात लगातार खाते रहने की है। आजकल जहाँ आहारिकी कई बार एक दिन में कई छोटे-छोटे आहारों की बात करती आयी है , वहाँ शरीर के भीतर कभी भूख का या फिर ग्लूकोज़ीय रिक्तता का एहसास ही नहीं होता। ठीक से भूख लगी भी नहीं होती और लोगों को खाना मिल जाता है। कीटोन-उत्पादन के पीछे वह पुरानी किन्तु कारगर सोच भी है कि दो या एक समय भोजन करो। चौबीस घण्टों में हमेशा खाते न रहो। व्रत-उपवास इच्छाशक्ति का इम्तेहान तो हैं ही , कीटोन-उत्पादन के कारण वज़न भी नियन्त्रित रखते हैं।

लेकिन कीटो-आहार सबके लिये नहीं है। सभी अगर कार्बोहाइड्रेट छोड़कर वसा प्रचुर भोजन प्रोटीन सहित खाने लगें , तो समस्या भी आ सकती है। ऐसे में अपने शरीर की स्थिति को समझा जाए। बीमारियों के सन्दर्भ में डॉक्टर और डायटीशियन से बात की जाए। उसके बाद ही कीटो-आहार के पक्ष-विपक्ष में निर्णय लेना सही है।

डॉ विवेक श्रीवास्तव
जीवक आयुर्वेदा 
हेल्पलाइन : 7704996699

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